कम से कम अपनी जुल्फे तो बाँध लिया करो

कमबख्त. बेवजह मौसम बदल दिया करते हैं

लुत्फ़ जो उस के इंतज़ार में है

वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है

मैं शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

कुछ दर्द कुछ नमी कुछ बातें जुदाई की,

गुजर गया ख्यालों से तेरी याद का मौसम

काश कोई इस तरह भी वाकिफ हो मेरी जिंदगी से,

कि मैं बारिश में भी रोऊँ और वो मेरे आँसू पढ़ ले

मेहरबान हमपे हर एक रात हुआ करती थी

आंख लगते ही मुलाकात हुआ करती थी

हिज्र की रात है और आंख में आंसू भी नहीं

ऐसे मौसम में तो बरसात हुआ करती थी

Credit: Ismail Raaz

ये वक़्त इस तरह रोने का तो नहीं लेकिन

मैं क्या करू के मेरे सोगवार अब आए

बदल गए मेरे मौसम तो यार अब आए

गमों ने चाट लिया गम़-गुसार अब आए

Credit: Farhat Abbas Shah

रुका हुआ है अज़ब धुप छाँव का मौसम

गुज़र रहा है कोई दिल से बादलों की तरह