दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई, दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई

मेरे बारे में कोई राय मत बनाना गालिब मेरा वक़्त भी बदलेगा तेरी राय भी

ये चंद दीन की दुनिया है ग़ालिब यहाँ पलकों पर बिठाया जाता है नज़रों से गिराने के लिए

ताउम्र बस एक यही सबक याद रखिये इश्क़ और इबादत में नियत साफ़ रखिये

"जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में"

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

गुज़र रहा हूँ यहाँ से भी गुज़र जाउँगा, मैं वक़्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा

ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में

कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते

बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर